हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के शहर में प्रदेश के विभिन्न स्थानों से आकर 200 से अधिक खिलाड़ी हॉकी सीख रहे हैं। इनमें 140 बालक और 60 बालिकाएं शामिल हैं।
दुनिया के नक्शे पर अपनी स्टिक से देश का नाम रोशन करने वाले हॉकी के जादूगर। वर्ष 1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक में देश को तीन गोल्ड मेडल दिलाने में अहम भूमिका निभाई। मेजर ध्यानचंद ने 43 वर्ष में ही खेल से संन्यास ले लिया। इसके बाद कर्मस्थली हीरोज ग्राउंड में ही नवोदित पौध को इस खेल की बारीकियों से रूबरू कराना शुरू कर दिया। नतीजतन बुंदेलखंड के 20 से अधिक खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को गौरवान्वित किया। वहीं, वर्तमान में प्रदेश के कोने-कोने से 200 से अधिक खिलाड़ी यहां हॉकी का प्रशिक्षण ले रहे हैं। हॉकी के प्रति उनके समर्पण को देखते हुए उनकी जयंती (29 अगस्त) को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है
मेजर ध्यानचंद के शहर झांसी में 200 से अधिक खिलाड़ी सीख रहे हॉकी
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के शहर में प्रदेश के विभिन्न स्थानों से आकर 200 से अधिक खिलाड़ी हॉकी सीख रहे हैं। इनमें 140 बालक और 60 बालिकाएं शामिल हैं। इन खिलाड़ियों को गोल्ड मेडलिस्ट राजेश सोनकर और खेलो इंडिया की प्रशिक्षक सुषमा कुमारी हॉकी की बारीकियां सिखा रही हैं। मेजर ध्यानचंद हॉकी छात्रावास में 27 खिलाड़ियों के रहने और ठहरने की व्यवस्था है। खिलाड़ियों के अभ्यास के लिए स्टेडियम में एस्ट्रोटर्फ के साथ ही डे नाइट मुकाबलों के लिए आधुनिक लाइटें लगाई गईं हैं। उन्हें सिखाने के लिए कोच भी हैं। मेजर ध्यानंचद स्टेडियम में वर्ष 2016 में 13 करोड़ से एस्ट्रोटर्फ स्थापित किया गया था। इसके साथ ही स्टेडियम में तीन हजार से अधिक दर्शकों के बैठने की व्यवस्था है। अब यहां राष्ट्रीय स्तर की हॉकी प्रतियोगिताएं होती हैं।
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के बारे में
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में हुआ था। उनके पिता समेश्वर सिंह ब्रिटिश इंडियन आर्मी में थे। कई बार स्थानांतरण होने के बाद उनका परिवार झांसी में ही बस गया था। वह सीपरी बाजार स्थित हीरोज ग्राउंड में पथरीले मैदान पर अभ्यास करते थे। 3 दिसंबर 1979 को उनका देहांत हो गया। महज 16 वर्ष की उम्र में ध्यानचंद ने भी आर्मी जॉइन कर ली थी।सेना में बतौर सिपाही अपना करियर शुरू किया था। इसी दौरान उन्हें मानो हॉकी से प्रेम ही हो गया था।
मेजर ध्यानचंद के परिवार ने जीते छह मेडल
मेजर ध्यानचंद और उनके परिवार के नाम एक अनूठा रिकॉर्ड भी है। उनका परिवार दुनिया का इकलाैता परिवार है, जिसने ओलंपिक में छह मेडल जीते। इनमें पांच गोल्ड और एक कांस्य पदक है। मेजर ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 ओलंपिक में तीन गोल्ड मेडल हासिल किए। वहीं, उनके भाई रूप सिंह ने भी 1932 और 1936 में अपने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन करते हुए गोल्ड मेडल प्राप्त किया। मेडल हासिल करने की परंपरा को आगे बढ़ाने में मेजर ध्यानचंद के पुत्र अशोक ध्यानचंद भी पीछे नहीं रहे। वर्ष 1972 में जर्मनी में आयाेजित ओलंपिक में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए उन्होंने कांस्य पदक हासिल किया
तो इसलिए कहलाए गए दद्दा
ठुकरा दिया था तानाशाह हिटलर का प्रस्ताव
जर्मनी के तानाशाह हिटलर भी हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के खेल के मुरीद थे। वर्ष 1936 में बर्लिन में आयोजित ओलंपिक खेलों में दद्दा के खेल से प्रभावित होकर हिटलर ने जर्मनी सेना में ऊंचे पद का प्रस्ताव दिया था। लेकिन दद्दा ने हिटलर का प्रस्ताव यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि जिस देश का नमक खाया है उस देश के साथ गद्दारी नहीं कर सकते हैं।
डिग्री सेल्सियस बुखार में खेलकर दिलाया था स्वर्ण पदक
1928 ओलंपिक के फाइनल में मेजर ध्यानचंद को 103 डिग्री सेल्सियस बुखार था। डॉक्टरों ने खेल के मैदान में उतरने से साफ मना कर दिया था। डॉक्टर के मना करने के बाद भी मेजर ध्यानचंद हॉकी को थाम कर मैदान पर पहुंच गए। ओलंपिक के फाइनल मुकाबले में मेजर ध्यानचंद ने दो गोल कर टीम को 3-0 से जीत दिलाई थी
जिस मैदान पर करते थे अभ्यास, वहीं बनी समाधि
तीन दिसंबर 1979 में दिल्ली में निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार उसी मैदान पर किया गया था जिस मैदान पर वहवह खेल का अभ्यास करते थे। राष्ट्रीय खेल दिवस पर हीरोज ग्राउंड पर कई प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। खेल दिवस पर देश के कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दद्दा को नमन करने के लिए आते हैं